किसानों की आय बढ़ाने में पशुपालन का स्थान अग्रणी है। कहा जाता है जब खेती से अपेक्षित आमदनी न मिले, तो पशुपालन से पैसा कमाना चाहिए। यह एक ऐसा व्यवसाय है, जिससे साल भर आमदनी हो सकती है। किसान खेती के साथ पशुपालन पर भी ध्यान दें, तो उनकी आमदनी में काफी बढ़ोतरी हो सकती है। यह ऐसा रोज़गार है, जिसे छोटे और भूमिहीन किसान भी आसानी से कर सकते हैं। पशुपालन (Animal husbandry) न केवल रोज़गार का एक मज़बूत ज़रिया है, बल्कि गरीबी और कुपोषण पर काबू पाने में मदद करता है। ‘हम’ एनजीओ आपको पशुपालन के बेहतर तकनीक, पशुओं की सही नस्ल का चयन, दूध, गोबर और गोमूत्र पर आधारित लघु उद्योग स्थापित करने में मदद करेगी।
खेती के साथ पशुपालन : प्राचीन समय में खेती पशुओं की सहायता के बिना संभव नहीं थी। खेती के अधिकांश कामों में जानवरों का सहारा लिया जाता था। आज भी खेती के साथ पशुपालन के कई लाभ हैं। इससे जैविक खेती को बढ़ावा मिलता है। यह एक प्रकार से समेकित खेती (Integrated farming) है, जिसमें फसलों और जानवरों दोनों को लाभ मिलता है। पशुओं से मिलने वाले गोबर और मूत्र से भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। खेती से हमें वर्ष भर आमदनी नहीं हो पाती है, लेकिन पशुपालन से हमें वर्ष भर नियमित रूप से आय प्राप्त होती रहती है।
व्यावसायिक पशुपालन : व्यावसायिक पशुपालन में पशुओं की संख्या अधिक होती है। इस प्रकार का पशुपालन बहुत ही व्यवस्थित और वैज्ञानिक तकनीकी से किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य अधिक आमदनी पाना होता है। जैसे- डेयरी फार्म, पोल्ट्री फार्म। पशुपालन में लागत और कमाई खेती के साथ पशुपालन करना मुनाफे का सौदा है। इसमें लागत की बात करें तो कुल कमाई का लगभग 70 प्रतिशत चारे और रखरखाव में खर्च होता है, बाकी 30 प्रतिशत शुद्ध आय के रूप में प्राप्त होती है। अगर पशुओं की संख्या की बात करें तो 10 गाय से प्रतिवर्ष 4-5 लाख का शुद्ध मुनाफा हो सकता है। इसके अलावा आप गोबर से भी कमाई कर सकते हैं। पशुपालन का मतलब सिर्फ गाय-भैंस नहीं है, इसके अलावा आप बकरी, भेड़, मुर्गीपालन भी कर सकते हैं।
खेती के साथ पशुपालन : भारत दुनिया में दुग्ध उत्पादन में नंबर एक पर है। पूरी दुनिया के आधे पशु भारत में पाए जाते हैं, लेकिन उनसे उत्पादन उतना नहीं। इसलिए ज़रूरी है कि किसान और पशुपालक परंपरागत ज्ञान के साथ विज्ञान का सहारा लें, खेती और पशुपालन में नई तकनीकों का इस्तेमाल करें किसान को सुविधानुसार पशुओं का पालन करना चाहिए, ताकि चारे का प्रबंध उनके खेत से ही हो सके।